अजीब सा सफर है ये ज़िंदगी,
मंज़िल मिलती है मौत के बाद
चले थे जिस की तरफ़ वो निशान ख़त्म हुआ
डर हम को भी लगता है रस्ते के सन्नाटे से
लेकिन एक सफ़र पर ऐ दिल अब जाना तो होगा
एक सफ़र वो है जिस में
पाँव नहीं दिल थकता है
इस सफ़र में नींद ऐसी खो गई
हम न सोए रात थक कर सो गई
किसी को घर से निकलते ही मिल गई मंज़िल
कोई हमारी तरह उम्र भर सफ़र में रहा
मैं अकेला ही चला था जानिब-ए-मंज़िल मगर
लोग साथ आते गए और कारवाँ बनता गया
मैं लौटने के इरादे से जा रहा हूँ मगर
सफ़र सफ़र है मिरा इंतिज़ार मत करना
सफ़र में धूप तो होगी जो चल सको तो चलो
सभी हैं भीड़ में तुम भी निकल सको तो चलो