अभी इक शोर सा उठा है कहीं
कोई ख़ामोश हो गया है कहीं
बातों को कोई न समझे
बेहतर है खामोश हो जाना।
बहुत कुछ बोलना है पर अभी ख़ामोश रहने दो
ख़मोशी बोलती है तो, बड़ी आवाज़ करती है
चुभता तो बहुत कुछ हैं मुझे भी तीर की तरह,
लेकिन खामोश रहता हूँ तेरी तस्वीर की तरह.
दोस्त की ख़ामोशी को मैं समझ नहीं पाया,
चेहरे पर मुस्कान रखी और अकेले में आंसू बहाया।
हम लबों से कह न पाए उन से हाल-ए-दिल कभी
और वो समझे नहीं ये ख़ामुशी क्या चीज़ है
जब इंसान अंदर से टूट जाता हैं,
तो अक्सर बाहर से खामोश हो जाता हैं.
जब ख़ामोश आखों से बात होती हैं,
ऐसे ही मोहब्बत की शुरूआत होती हैं.
जज्बात कहते हैं, खामोशी से बसर हो जाएँ,
दर्द की ज़िद हैं कि दुनिया को खबर हो जाएँ.
जो दुनिया को सुनाई दे उसे कहते हैं ख़ामोशी
जो आँखों में दिखाई दे उसे तूफ़ान कहते हैं
कभी खामोश बैठोगे कभी कुछ गुनगुनाओगे,
मैं उतना याद आऊंगा मुझे जितना भुलाओगे।
ख़ामोश शहर की चीखती रातें,
सब चुप हैं पर, कहने को है हजार बातें.
कितनी लम्बी ख़ामोशी से गुज़रा हूँ
उन से कितना कुछ कहने की कोशिश की
जिधर जाते हैं सब जाना उधर अच्छा नहीं लगता
जब कोई बाहर से खामोश होता है,
तो उसके अंदर बहुत ज्यादा शोर होता हैं.
मेरी ख़ामोशी में सन्नाटा भी हैं और शोर भी हैं,
तूने गौर से नहीं देखा, इन आखों में कुछ और भी हैं.
मुँह की बात सुने हर कोई दिल के दर्द को जाने कौन
आवाज़ों के बाज़ारों में ख़ामोशी पहचाने कौन
उदासी और ख़ामोशी भरी इक शाम आएगी
मेरी तस्वीर रख लेना तुम्हारे काम आएगी