चांद से तो हर किसी को प्यार है, मैं खुशनसीब हूं कि चांद को मुझसे प्यार है
इतने घने बादल के पीछे
कितना तन्हा होगा चाँद
कभी तो आसमाँ से चाँद उतरे जाम हो जाए
तुम्हारे नाम की इक ख़ूब-सूरत शाम हो जाए
लोग पूछते हैं कि हम चांद को यूं बार-बार देखते क्यों हैं,
अब उन्हें कौन समझाए की चांद में हमें महबूब नजर आता है।
मेरा और चाँद का मुक़द्दर एक जैसा है,
वो तारो में अकेला मैं हजारो में अकेला।
तुझको देखा तो फिर उसको ना देखा मैंने,
चाँद कहता रह गया मैं चाँद हूँ मैं चाँद हूँ।
आज टूटेगा गुरूर चाँद का तुम देखना यारो,
आज मैंने उन्हें छत पर बुला रखा है।
तू चाँद और मैं सितारा होता, आसमान में एक आशियाना हमारा होता,
लोग तुम्हे दूर से देखते,नज़दीक़ से देखने का, हक़ बस हमारा होता..!!