Aise Hijr Ke Mausam Ab Kab Aate Hain
ऐसे हिज्र के मौसम अब कब आते हैं
तेरे अलावा याद हमें सब आते हैं
जज़्ब करे क्यों रेत हमारे अश्कों को
तेरा दामन तर करने अब आते हैं
अब वो सफ़र की ताब नहीं बाक़ी वरना
हम को बुलावे दश्त से जब-तब आते हैं
जागती आँखों से भी देखो दुनिया को
ख़्वाबों का क्या है वो हर शब आते हैं
काग़ज़ की कश्ती में दरिया पार किया
देखो हम को क्या-क्या करतब आते हैं