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नाराजगी कभी वहाँ मत रखियेगा जहाँ, आपको ही बताना पड़े की आप नाराज हो
मेरी फितरत में नहीं हैं किसी से नाराज होना, नाराज वो होतें हैं
जिन्हें अपने आप पर गुरूर होता है।
एक नाराज़गी सी है जहन में जरुर, पर मैं खफ़ा किसी से नहीं।
खामोशियां ही बेहतर हैं, शब्दों से लोग नाराज़ बहुत हुआ करते हैं।
नाराजगी उनसे भले बेशुमार रहती है, पर उन्हें देखने की चाहत बरकरार रहती हैं।
तेरी बात को
खामोशी से मान
लेना,
ये भी अंदाज है
मेरी नाराज़गी
का।
जब नाराजगी
किसी ख़ास से होती है, तब इन्सान चिल्लाता नहीं रो देता है !!
तेरी नाराजगी
वाजिब है ए दोस्त, मैं भी खुद से खुश नहीं आजकल !!
मेरी नाराज़गी को
मेरी बेवफ़ाई मत
समझना,
नाराज़ भी उसी से
होते है जिससे
बेइंतिहा मोहब्बत
हो।
नाराज़गी चाहे कितनी भी हो तुम्हें छोड़ देने का ख्याल हम आज भी नहीं रखते…!
तेरी नाराज़गी, मेरी दीवानगी, चल देखें किसकी उम्र ज्यादा है।
ये कैसी मोहब्बत का आगाज़ कर रहे हो, शुरू हुई नहीं और, पहले ही हमे नाराज कर रहे हो.
चाँद के बिना चाँदनी अधूरी होती है, नाराज़गी ना हो तो मोहब्बत अधूरी होती है.
तुम्हारी हर अदा है सबसे नियारी जब रूठ जाती हो तुम तो लगती हो बहुत प्यारी
नाराज़गी हो तो जता लेना, लेकिन नफ़रत न करना, चाहत किसी और हो जाएं तो बता देना, बस बेवफाई न करना।
जिंदगी की रिहाई से नहीं, तुम्हारी नाराज़गी से डर लगता है
झुकी झुकी नजर
तेरी कमाल कर जाती है, उठती है एक बार और सौ सवाल कर जाती है !!
ओ आँख चुरा के जाने वाले, हम भी थे कभी तेरी नज़रों में !!
हर नजर में मुमकिन नहीं है बे- गुनाह रहना, वादा ये करें कि खुद की नजर में बेदाग रहें।
नज़र ने नज़र से
मुलाकात कर ली रहे दूर दोनों मगर बात कर ली,